धड़क की खासियत है कि इसके हीरो-हीरोइन 21-22 बरस के हैं और लंबे समय बाद इतने कम उम्र के हीरो-हीरोइन परदे पर रोमांस करते दिखाई दिए हैं।
उदयपुर में रहने वाली पार्थवी (जाह्नवी कपूर) के पिता रतन सिंह (आशुतोष राणा) का नेता के रूप में दबदबा है। मधुकर (ईशान खट्टर) एक मध्यमवर्गीय परिवार से है। उसके पिता एक छोटा होटल चलाते हैं। पार्थवी को मधुकर के मुकाबले ऊंची जाति का बताया गया है। जाति और आर्थिक अंतर होने के बावजूद पार्थवी और मधुकर एक-दूसरे को चाहने लगते हैं।
यह बात जब रतन सिंह और उसके बेटे को पता चलती है तो वे मधुकर को जेल में डलवा देते हैं। मधुकर को पार्थवी अपने साथ भगा ले जाती है। उदयपुर से मुंबई, नागपुर होते हुए वे कोलकाता पहुंच जाते हैं। वहां दोनों नौकरी कर जिंदगी की नई शुरुआत करते हैं। उनके यहां बेटे का भी जन्म होता है। इसके बाद स्तब्ध कर देने वाले अंत से फिल्म समाप्त होती है।दोनों के बीच की नोक-झोक फॉर्मूलाबद्ध है। शुरुआत में मधुकर का एक तरफा प्यार दिखाया गया है, लेकिन पार्थवी के दिल में उसके लिए जगह बनाने वाले दृश्य बेहत सतही है और फिल्म देखते हुए यह मजबूरन मानना पड़ता है कि अब पार्थवी भी मधुकर को चाहने लगी है। इस रोमांस के बीच मधुकर के दोस्तों के जरिये हास्य पैदा करने की कोशिश की गई है, लेकिन इक्का-दुक्का दृश्यों में ही हंसी आती है।
कोलकाता में दोस्तों के सामने मधुकर अजीब सा व्यवहार क्यों करने लगता है, समझ के परे है। पार्थवी अपने घर (पिता का घर) को छोड़कर होटल में क्यों रहती हैं? इसका उत्तर नहीं मिलता। रतन सिंह को बेहद शक्तिशाली नेता दिखाया गया है। वह अपनी बेटी को इतने वर्षों में भी खोज पाने में क्यों असफल रहता है? ये सवाल सेकंड हाफ में परेशान करते हैं और फिल्म भी उबाने लगती है।
फिल्म का क्लाइमैक्स दंग कर देता है। बिना किसी संवाद और बैकग्राउंड म्युजिक के ये बेहद प्रभावी बन गया है।
अजय-अतुल का संगीत फिल्म का प्लस पाइंट है। 'धड़क', 'झिंगाट', 'पहली बार' की न केवल धुन अच्छी है बल्कि अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखे भी अच्छे हैं। 'झिंगाट' जैसे हिट गीत का फिल्मांकन निराशाजनक है।
ईशान खट्टर बेहतर अभिनेता सिद्ध हुए हैं। एक लड़की के प्रेम में डूबे लड़के के किरदार को उन्होंने अच्छी तरह से जिया है। ईशान के दोस्तों के रूप में श्रीधर और अंकित बिष्ट का अभिनय अच्छा है।
उदयपुर में रहने वाली पार्थवी (जाह्नवी कपूर) के पिता रतन सिंह (आशुतोष राणा) का नेता के रूप में दबदबा है। मधुकर (ईशान खट्टर) एक मध्यमवर्गीय परिवार से है। उसके पिता एक छोटा होटल चलाते हैं। पार्थवी को मधुकर के मुकाबले ऊंची जाति का बताया गया है। जाति और आर्थिक अंतर होने के बावजूद पार्थवी और मधुकर एक-दूसरे को चाहने लगते हैं।
यह बात जब रतन सिंह और उसके बेटे को पता चलती है तो वे मधुकर को जेल में डलवा देते हैं। मधुकर को पार्थवी अपने साथ भगा ले जाती है। उदयपुर से मुंबई, नागपुर होते हुए वे कोलकाता पहुंच जाते हैं। वहां दोनों नौकरी कर जिंदगी की नई शुरुआत करते हैं। उनके यहां बेटे का भी जन्म होता है। इसके बाद स्तब्ध कर देने वाले अंत से फिल्म समाप्त होती है।दोनों के बीच की नोक-झोक फॉर्मूलाबद्ध है। शुरुआत में मधुकर का एक तरफा प्यार दिखाया गया है, लेकिन पार्थवी के दिल में उसके लिए जगह बनाने वाले दृश्य बेहत सतही है और फिल्म देखते हुए यह मजबूरन मानना पड़ता है कि अब पार्थवी भी मधुकर को चाहने लगी है। इस रोमांस के बीच मधुकर के दोस्तों के जरिये हास्य पैदा करने की कोशिश की गई है, लेकिन इक्का-दुक्का दृश्यों में ही हंसी आती है।
कोलकाता में दोस्तों के सामने मधुकर अजीब सा व्यवहार क्यों करने लगता है, समझ के परे है। पार्थवी अपने घर (पिता का घर) को छोड़कर होटल में क्यों रहती हैं? इसका उत्तर नहीं मिलता। रतन सिंह को बेहद शक्तिशाली नेता दिखाया गया है। वह अपनी बेटी को इतने वर्षों में भी खोज पाने में क्यों असफल रहता है? ये सवाल सेकंड हाफ में परेशान करते हैं और फिल्म भी उबाने लगती है।
फिल्म का क्लाइमैक्स दंग कर देता है। बिना किसी संवाद और बैकग्राउंड म्युजिक के ये बेहद प्रभावी बन गया है।
अजय-अतुल का संगीत फिल्म का प्लस पाइंट है। 'धड़क', 'झिंगाट', 'पहली बार' की न केवल धुन अच्छी है बल्कि अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखे भी अच्छे हैं। 'झिंगाट' जैसे हिट गीत का फिल्मांकन निराशाजनक है।
ईशान खट्टर बेहतर अभिनेता सिद्ध हुए हैं। एक लड़की के प्रेम में डूबे लड़के के किरदार को उन्होंने अच्छी तरह से जिया है। ईशान के दोस्तों के रूप में श्रीधर और अंकित बिष्ट का अभिनय अच्छा है।